पाठ 2 : उद्धव-प्रसंग / गंगावतरण

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जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ का जीवन परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ


प्रश्न-पत्र में संकलित पाठों में से चार कवियों के जीवन परिचय, कृतियाँ तथा भाषा-शैली से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। जिनमें से एक का उत्तर देना होता है। इस प्रश्न के लिए 3+2=5 अंक निर्धारित हैं।

जीवन परिचय

आधुनिक काल के ब्रजभाषा के सर्वश्रेष्ठ कवि जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ का जन्म काशी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में 1866 ई. (विक्रम सम्वत् 1923) में हुआ था। ‘रत्नाकर’ जी के पिता श्री पुरुषोत्तमदास भारतेन्दु जी के समकालीन, फारसी भाषा के विद्वान् और हिन्दी काव्य के मर्मज्ञ थे। स्कूली शिक्षा समाप्त करने के बाद 1891 ई. में वाराणसी के सीन्स कॉलेज से बी. ए. की डिग्री प्राप्त करके वर्ष 1902 में अयोध्या-नरेश के निजी सचिव नियुक्त हुए और वर्ष 1928 तक इसी पद पर रहे। राजदरबार से सम्बद्ध होने के कारण इनका रहन-सहन सामन्ती था, लेकिन इनमें प्राचीन धर्म, संस्कृति और साहित्य के प्रति गहरी आस्था थी। इन्हें प्राचीन भाषाओं का अच्छा ज्ञान था तथा ज्ञान-विज्ञान की अनेक शाखाओं में गति भी थी। वर्ष 1932 में इनकी मृत्यु हरिद्वार में हुई।

साहित्यिक गतिविधियाँ:- इन्होंने ‘साहित्य-सुधानिधि’ और ‘सरस्वती’ के सम्पादन, ‘रसिक मण्डल’ के संचालन तथा ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ की स्थापना एवं उसके विकास में योगदान दिया।

काव्य कृतियाँ:- गद्य एवं परा दोनों विधाओं में साहित्य सृजन करने वाले रत्नाकर जी मूलतः कवि थे। इनकी प्रमुख कृतियों में हिण्डोला, समालोचनादर्श, हरिश्चन्द्र, गंगालहरी, शृंगारलहरी, विष्णुलहरी, रत्नाष्टक, गंगावतरण तथा उद्धव शतक उल्लेखनीय हैं। इनके अतिरिक्त इन्होंने सुधाकर, कविकुलकण्ठाभरण, दीप-प्रकाश, सुन्दर श्रृंगार, हमीर हठ, प्रकीर्ण गधावली, रस-विनोद, हिम-तरंगिणी, बिहारी-रत्नाकर आदि ग्रन्थों का सम्पादन भी किया।

भाषा शैली:-

रत्नाकर जी भाषा के मर्मज्ञ तथा शब्दों के आचार्य थे। सामान्यतया इन्होंने काव्य में प्रौद साहित्यिक ब्रजभाषा को ही अपनाया, लेकिन उनकी भाषा में जहाँ तहाँ बनारसी बोली का भी समावेश देखने को मिलता है। भाषा व्याकरणसम्मत, मधुर एवं प्रवाहयुक्त है। वाक्य-विन्यास सुगठित एवं प्रवाहपूर्ण है। कहावतों एवं मुहावरों का भी कुशल प्रयोग किया है।

उद्धव-प्रसंग ( पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर)

प्रश्न-पत्र में पद्म भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर: देने होंगे।

प्रश्न 1. भेजे मनभावन के उद्धव के आवन की सुधि ब्रज-गाँवनि मैं पावन जबै लगीं।
कहै ‘रतनाकर’ गुवालिनि की झौरि-झौरि
दौरि-दौरि नन्द-पौरि आवन तबै लगीं।
उझकि-उझकि पद-कंजनि के पंजनि पैं
पेखि-पेखि पाती छाती छोहनि छबै लगीं।
मकौं लिख्यौ है कहा, हमकौं लिख्यौ है कहा,
हमकौं लिख्यौ है कहा, कहन सबै लगीं।।


01 प्रस्तुत पद्यांश के कवि व शीर्षक का नामोल्लेख कीजिए।

उत्तर: प्रस्तुत पद्यांश ‘उद्धव प्रसंग’ कविता से उद्धृत है तथा इसके कवि जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ जी हैं।

02 गोपियों के अत्यन्त व्याकुल होने के कारण को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: कवि कहते हैं कि जब गोपियों को यह ज्ञात हुआ कि उद्धव उनके प्रिय श्रीकृष्ण का कोई सन्देश लेकर आए हैं, तो वे अपने प्रियतम का सन्देश जानने के लिए अत्यन्त व्याकुल हो उठती हैं।

03 श्रीकृष्ण द्वारा भेजे गए सन्देश के आगमन पर गोपियों का चित्रण कवि ने किस प्रकार किया है?

उत्तर: श्रीकृष्ण द्वारा भेजे गए सन्देश को उनके दूत उद्धव लाते हैं। इसकी सूचना मिलते ही सभी गोपियाँ समूह में दौड़-दौड़कर अपने प्रियतम (कृष्ण) के दूत (उद्धव) से मिलने हेतु नन्द के द्वार पर आने लगी और अपने कमलपी चरणों के पंजों पर उचक-उचककर में श्रीकृष्ण द्वारा भेजे गए सन्देश को देखने लगीं। यहाँ कवि ने गोपियों की व्याकुलता को उजागर किया है।

04 “हम लिख्यौ है कहा कहन सबै लगीं।” इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति का आशय यह है कि सभी गोपियाँ अपने प्रियतम द्वारा भेजे गए सन्देश को जानने हेतु उत्कण्ठित हो उठी हैं। वे सभी उद्धव से जानना चाहती हैं कि उनके प्रियतम में उनके लिए क्या-क्या सन्देश भेजे हैं। वे सभी अपने-अपने सन्देश को सुनने के लिए अत्यन्त व्याकुल हो चुकी हैं।

05 प्रस्तुत पद्यांश के अलंकार सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर: ‘झौरि-झौरि’, ‘दौरि-दौरि’, ‘उझकि-उझकि’, ‘पेखि-पेखि’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है, ‘छाती छोहनि छबै ’ में अनुप्रास अलंकार है, ‘पद-कंजनि’ में ‘रूपक अलंकार’ है।



प्रश्न 2. कान्ह-दूत कैधौं ब्रह्म-दूत हैं पधारे आप
धारे प्रन फेरन कौ मति ब्रजबारी की।
कहै ‘रतनाकर’ पै प्रीति-रीति जानत ना।
ठानत अनीति आनि नीति लै अनारी की।
मान्यौ हम, कान्ह ब्रह्म एक ही, कह्यौ जो तुम
तौहूँ हमें भावति ना भावना अन्यारी की।
जैहै बनि बिगरि न बारिधिता बारिधि कौं
बूंदता बिलैहे बूंद बिबस बिचारी की।


उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

01 गोपियों ने उद्धव के आगमन पर क्या प्रश्न किया?

उत्तर: गोपियों ने उद्धव के आगमन पर प्रश्न किया कि आप जमण्डल में हमारी बुद्धि बदलने का प्रण लेकर कृष्ण के दूत बनकर आए हैं या ब्रह्म के दूत बनकर आए हैं?

02 “धारे प्रन फेरन को मति ब्रजबारी की।” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से उद्धव गोपियों का ध्यान कृष्ण प्रेम से हटाना चाहते हैं। उद्धव गोपियों को निर्गुण उपासना के प्रति उपदेश देकर कृष्ण की सगुण उपासना का विरोध गोपियों के समक्ष करते हैं, जिससे गोपियों का हृदय परिवर्तन हो जाए और वे कृष्ण को अपने मन से विस्मृत कर दें।

03 कवि ने उद्धव को अनारी क्यों कहा हैं?

उत्तर: कवि के अनुसार उद्धव को प्रीति की रीति का ज्ञान नहीं हैं और वे बुद्धिहीनों जैसा व्यवहार करके गोपियों के साथ अन्याय कर रहे हैं। वे गोपियों के प्रेमी कृष्ण के स्थान पर ब्रह्म की बातों का उपदेश दे रहे हैं। यही कारण है कि कवि ने उद्धव को अनारी कहा है।

04 प्रस्तुत पद्यांश में ब्रह्म की तुलना किससे की गई है?

उत्तर: प्रस्तुत पद्यांश में ब्रह्म की तुलना गोपियों ने अथाह समुद्र से करते हुए कहा है कि ब्रह्म अथाह समुद्र की तरह है एवं वे जल की बूंदों के समान हैं। समुद्र में जल की कुछ बूंदें मिलें या नहीं मिलें, इससे समुद्र के अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, परन्तु बूंद समुद्र में मिल जाए तो उसका अस्तित्व अवश्य की समाप्त हो जाता है।

05 प्रस्तुत पद्यांश में प्रयुक्त रस को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने नायक से नायिका के न मिल पाने के कारण उसकी विरहावस्था का वर्णन किया है। अतः इसमें वियोग श्रृंगार रस हैं।



प्रश्न 3. ब्रज-रज-रंजित सरीर सुभ ऊधव को
धाइ बलबीर है अधीर लपटाए लेत।
कहै ‘रतनाकर’ सु प्रेम-मद-माते हेरि
थरकति बाँह थामि थहरि थिराए लेत।
कीरति कुमारी के दरस-रस सद्य ही की
छलकनि चाहि पलकनि पुलकाए लेत।
परन न देत एक बूंद पुहुमी की कॉछि
पोछि-पोछि पट निज नैननि लगाए लेत।।


उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

01 प्रस्तुत पद्यांश में किस प्रसंग का वर्णन है?

उत्तर: प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने गोपियों की भक्ति भावना से विल उद्धव जी के मथुरा लौट आने के पश्चात् उनकी दशा को देखकर कृष्ण जी की भाव विह्वलता की रिथति का वर्णन किया है।

02 श्रीकृष्ण के मन में गोपियों की मधुर-स्मृति कैसे जागृत हुई?

उत्तर: जब उद्धव ब्रज से लौटकर मथुरा आए तब उनका शरीर भूल से भरा हुआ था। ब्रज की पवित्र मिट्टी में लिप्त उद्धव को देख श्रीकृष्ण भाव-विह्वल हो उठे और उन्होंने शव को अपनी बाँहों में ले लिया। उद्धव का धूल भरा शरीर तथा गोपियों के प्रति उनका प्रेम-भाव देखकर ही श्रीकृष्ण के मन में गोपियों एवं ब्रजवासियों की मधुर-स्मृति जागृत हुई

03 “कहें ‘रत्नाकर’ सु प्रेम-मद-माते हेरि, थरकति बाँह थामि थहरि थिराए लेत।।” प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि का क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: प्रस्तुत काव्य पंक्तियों से कवि का आशय है कि उद्धव को प्रेम-मर्द में लीन देखकर श्रीकृष्ण उनकी काँपती भुजा को थाम लेते हैं और अपने मन में गोपियों के उस पवित्र प्रेम को याद करके वे काँपते हुए हाथों से उद्धव को स्थिर करने का प्रयास करते हैं।

04 श्रीकृष्ण को उद्धव के आँसुओं का स्वरूप कैसा लगता है?

उत्तर: श्रीकृष्ण को उद्धव के आँसुओं का स्वरूप राधा के समान दिखाई पड़ता है। राधा के दर्शन से पवित्र हुई उद्धव की आँखों से जब गोपियों के वियोग में आँसू निकल आते हैं तो श्रीकृष्ण उन आँसुओं को पृथ्वी पर गिरने से पूर्व ही एक-एक बूंद को अपने दुपट्टे से पोंछकर अपनी आँखों से लगा लेते हैं, क्योंकि ये आँसू जिन आँखों से निकले थे वे आँखें राधा के दर्शन करके आई थीं।

05 ”पोछि-पोछि पट निज नैननि लगाए लेत” प्रस्तुत पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?

उत्तर: पोछि-पोछि में पोछि शब्द की पुनरावृत्ति होने के कारण पुनरुक्तिप्रकाश तथा ‘निज नैननि लगाए लेत’ में ‘न’ और ‘ल’ वर्ण की आवृत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकार है



गंगावतरण ( पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर)

प्रश्न-पत्र में पद्म भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर: देने होंगे।

प्रश्न 1.निकसि कमण्डल तें उमण्डि नभ-मण्डल खण्डति।
धाई धार अपार बेग सौं बायु बिहण्डति।
भयौ घोर अति शब्द धमक सौं त्रिभुवन तरजे।
महामेघ मिलि मनहु एक संगहिं सब गरजे।।
निज दरेर सों पौन-पटल फारति फहरावति।।
सुर-पुर के अति सघन घोर धन घसि धहरावति।।
चली धार धुधकारि धरा-दिसि काटति कावा।
सगर-सुतनि के पाप-ताप पर बोलत धावा।।
स्वाति-घटा घराति मुक्ति-पानिप सौं पूरी।
कैधों आवति झुकति सुभ्र आभा रुचि रूरी।।
मीन-मकर-जलव्यालनि की चल चिलक सुहाई।।
सो जनु चपला-चमचमति चंचल छबि छाई।।


उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

01 प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से अवतरित हैं तथा इसके रचनाकार कौन हैं?

उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘गंगावतरण’ कविता से अवतरित है तथा इसके रचनाकार आधुनिक काल के ब्रजभाषा के सर्वश्रेष्ठ कवि जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ जी हैं।

02 प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने किसका वर्णन किया हैं?

उत्तर: प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने ब्रह्मा जी के कमण्डल से अवतरित हुई गंगा के स्वर्गलोक से पृथ्वीलोक पर आने के क्रम में उसकी स्वाभाविक दशा का वर्णन किया है। गंगावतरण स्वर्गलोक से पृथ्वीलोक पर सगर के पुत्रों के उद्धार के लिए हुआ था। इसी भाव की अभिव्यक्ति कवि ने प्रस्तुत पद्यांश में की है।

03 गंगा के स्वर्गलोक से पृथ्वीलोक तक आने के क्रम को कवि ने किस प्रकार वर्णित किया है?

उत्तर: स्वर्गलोक से पृथ्वीलोक तक आने के क्रम में गंगा के तीव्र वेग से अति भयंकर शब्द ध्वनित होते हैं, जिसकी धमक से तीनों लोक काँप उठते हैं। पृथ्वी पर गंगा के अवतरण का वेग अत्यधिक प्रचण्ड है, उससे उत्पन्न ध्वनि सुनकर ऐसा प्रतीत हो। रहा है जैसे प्रलयकाल के बादल एक साथ मिलकर गरज रहे हों।

04 गंगा की श्वेत धारा को देखकर कैसा प्रतीत हो रहा है?

उत्तर: आकाश से धरती पर उतरती हुई गंगा की श्वेत धारा को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे मोतियों की कान्ति से परिपूर्ण स्वाति नक्षत्र के मेघों का समूह आकाश में उमड़ रहा हो या सुन्दर श्वेत प्रकाशमान ज्योति पृथ्वी की ओर झुकती हुई चली आ रही हो।

05 ‘त्रिभुवन’ शब्द का समास विग्रह करते हुए उसका भेद बताइए।

उत्तर: तीन भुवनों का समाहार (द्विगु समास)।



प्रश्न 2.रुचिर रजतमय कै बितान तान्यौ अति बिस्तर।
झरति बूंद सो झिलमिलाति मोतिनि की झालर।।
ताके नीचें राग-रंग के ढंग जमाये।
सुर-बनितनि के बृन्द करत आनन्द-बधाये।।
कबहुँ सु-धार अपार वेग नीचे कौं धावै।
हरहराति लहराति सहस जोजन चलि आवै।।
मनु बिधि चतुर पौन निज मन को पावत।
पुन्य-खेति-उत्पन्न हीर की रासि उसावत।।


उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

01 प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अपने किन काल्पनिक भावों की अभिव्यक्ति की हैं?

उत्तर: प्रस्तुत पद्यांश में गंगावतरण का वर्णन करने के क्रम में कवि ने कल्पना के आधार पर ब्रह्मारूपी किसान एवं हीरे रूपी फसल के अपने काल्पनिक भावों की अभिव्यक्ति की है।

02 "रुचिर रजतमय के बितान तान्यो अति बिस्तर। झरति बूंद सो झिलमिलाति मोतिनि की झालर।।" प्रस्तुत काव्य पंक्तियों से कवि का क्या आशय है।

उत्तर: कवि का इन पंक्तियों से आशय है कि गंगा जब आकाश से पृथ्वी पर अवतरित हो रही थी, तब उसे देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी ने सुन्दर रूपहला श्वेत रंग का विस्तृत चँदोवा (तम्बू) टाँग दिया हो। गंगा की धारा से जल बूंदें तम्बू में लटकी हुई मोतियों की झालर के समान शोभा पा रही थीं।

03 गंगा की धारा, जल की बूँदों को पृथ्वी पर गिरते देख कैसा प्रतीत होता है?

उत्तर: गंगा की धारा, जल की बूंदों को पृथ्वी पर गिरते हुए देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे ब्रह्मारूपी चतुर किसान ने अपने मन के अनुकूल पवन गति को देखकर अपने पुण्यरूपी खेत से उत्पन्न हीरे की फसल उड़ाकर ।अर्थात उसकी प्रचुर राशि की वर्षा पृथ्वी पर कर दी हो।

04 कवि ने गंगा की धारा के जल की बूंदों तथा उसकी फुहारों की तुलना किससे की है?

उत्तर: कवि के अनुसार ब्रह्मारूपी किसान ने अपने पुण्यरूपी कृषि से उत्पन्न हीरे को। अर्थात गंगा की धारा के जल की बँदों को हवा में उड़ाया, तो उसका भूसा फुहार के रूप में इधर-उधर फैल गया। कवि ने गंगा की धारा के जल की बूंदों को हीरा एवं उसकी फुहारों की तुलना भूसे से की है।

05 'मनु बिधि चतुर पौन निज मन को पावत' पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?

उत्तर: प्रस्तुत काव्य पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार है। उत्प्रेक्षा अलंकार में जनु, मनु, जानो, मानो आदि योजक शब्दों का प्रयोग किया जाता है।







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