पाठ 6 : ध्रुवयात्रा

जैनेन्द्र कुमार

Previous
Next



पात्र-परिचय

राजा रिपुदमन बहादुर -- कहानी के नायक जो अभी-अभी उत्तरी ध्रुव की यात्रा करके लौटे हैं
उर्मिला -- राजा रिपुदमन बहादुर की प्रेमिका
आचार्य मारुति -- उर्मिला के पिता



पाठ का सारांश

हिन्दी जगत के ख्यातिलब्ध कहानीकार जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित कहानी ध्रुवयात्रा’सामाजिक, मनोविश्लेषणात्मक, यथार्थवादी रचना है ।



विजेता के रूप में राजा रिपुदमन बहादुर

कहानी का मुख्य पात्र राजा रिपुदमन बहादुर उत्तरी ध्रुव जीतकर यूरोप के नगरों की बधाइयां लेते हुए मुंबई और फिर वहां से दिल्ली आते हैं। उनकी प्रेयसी उर्मिला अन्य खबरों की तरह ही इस खबर को भी पढ़ती है, लेकिन किसी प्रकार की व्याकुलता या जिज्ञासा प्रकट नहीं करती।


राजा रिपुदमन बहादुर एवं उर्मिला के बीच प्रेम संबंध

राजा रिपुदमन एवं उर्मिला के बीच काफी पहले से प्रेम संबंध है, लेकिन उन दोनों ने परस्पर विवाह नहीं किया है। रिपुदमन विवाह को बंधन मानते हैं, किंतु प्रेम को सत्य मानते हैं। वह मानसोपचार के लिए आचार्य मारुति से मिलते हैं, क्योंकि उन्हें नींद कम आने तथा मन नियंत्रण में नहीं रहने की समस्या महसूस होती है। आचार्य उन्हें शारीरिक रूप से स्वस्थ बताते हैं।


राजा रिपुदमन की उर्मिला से मुलाकात

राजा रिपुदमन ने उर्मिला से विवाह नहीं किया हैं, किंतु उन दोनों के प्रेम संबंधों के कारण उनकी एक संतान है। उर्मिला राजा से मिलने आई तो साथ में अपने बच्चे को भी लाई, जिसके नाम को लेकर उन दोनों के बीच चर्चा होती है। दोनों बात करने के लिए जमुना किनारे पहुंच जाते हैं। वहां उर्मिला राजा से कहती है कि तुम अब मेरी व मेरे बच्चे की जिम्मेदारी से मुक्त हो । अब तुम निश्चिंत होकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति करने पर अपना ध्यान केंद्रित करो। उर्मिला सिद्धि प्राप्ति के लिए राजा को दक्षिणी ध्रुव जाने की सलाह देती है।


आचार्य (उर्मिला के पिता) द्वारा विवाह के लिए दबाव डालना

राजा रिपुदमन आचार्य को बताते हैं कि उर्मिला पहले विवाह के लिए उद्यत थी, जबकि वह तैयार नहीं थे। गर्भधारण करने के बाद वह विवाह के लिए तैयार थे, किंतु उर्मिला ने उन्हें ध्रुव यात्रा पर भेज दिया। अब लौट आने पर वह प्रसन्न नहीं है। वह कहती है कि यात्रा की कहीं समाप्ति नहीं होती। आचार्य मारुति राजा को बताते हैं कि उर्मिला उन्हीं की बेटी है और तुम लोग विवाह कर के साथ-साथ यहीं रहो। अपने आचार्य पिता की बात उर्मिला नहीं मानती है। उनका अंत समय आने पर भी उर्मिला उनके अनुरोध को स्वीकार नहीं करती है और अपने पिता से स्वयं को भूल जाने के लिए कहती है


उर्मिला के दृढ़ संकल्प के सामने रिपुदमन का झुकना

जब राजा रिपुदमन को यह विश्वास हो गया कि उर्मिला किसी भी प्रकार अपने निश्चय से नहीं हटने वाली है, तो वह पूछते हैं कि उन्हें कब जाना है? तो उर्मिला कहती है कि जब हवाई जहाज मिल जाए, राजा उसी समय शटलैंड के लिए पूरा जहाज बुक कर लेते हैं, जो तीसरे दिन ही जाने वाला होता है। इतनी जल्दी जाने की बात सुनकर उर्मिला थोड़ी भावुक हो जाती है, लेकिन रिपुदमन कहते हैं कि उर्मिला रूपी स्त्री के अंदर छिपी प्रेमिका की यही इच्छा है।


रिपुदमन की दक्षिणी ध्रुव जाने की तैयारी

इस खबर से दुनिया के अखबारों में धूम मच गई। लोगों की उत्सुकता का ठिकाना न रहा । उर्मिला सोच रही थी कि आज उनके जाने की अंतिम संध्या हैं। राष्ट्रपति की ओर से भोज दिया गया होगा। एक से बढ़कर एक बड़े-बड़े लोग उसमें शामिल होंगे। कभी वह अनंत शून्य में देखती तो कभी अपने बच्चे में डूब जाती।


राजा रिपुदमन द्वारा आत्महत्या करना

तीसरे दिन जो जाने का दिन था, उर्मिला ने अखबार पढ़ा राजा रिपुदमन सवेरे खून से भरे पाए गए। गोली का कनपटी के आर-पार निशान है। अखबार में विवरण एवं विस्तार के साथ उनसे संबंधित अनेक सूचनाएं थी, जिन्हें उर्मिला ने अक्षर-अक्षर सब पड़ा।


राजा रिपुदमन द्वारा आत्महत्या से पहले लिखा गया पत्र

राजा ने अपने पत्र में लिखा है कि "दक्षिणी ध्रुव जाने में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं थी, फिर भी वे जाना चाहते थे क्योंकि इस बार उन्हें वापस नहीं लौटना था। लोगों ने इसे मेरा पराक्रम समझा लेकिन यह छलावा है क्योंकि इसका श्रेय मुझे नहीं मिलना चाहिए। ध्रुव पर जाने पर भी मैं नहीं बचता या फिर नहीं लौटता और आत्महत्या कर के भी नहीं लौटूंगा। मैं अपने होशोहवास में अपना जीवन समाप्त करके किसी की परिपूर्णता में काम आ रहा हूं। भगवान मेरे प्रिय के लिए मेरी आत्मा की रक्षा करें।



लघु उत्तरीय प्रश्न

निर्देश: नवीनतम पाठ्यक्रम के अनुसार, कहानी सम्बन्धी प्रश्न के अन्तर्गत पठित कहानी से चरित्र-चित्रण, कहानी के तत्त्व एवं तथ्यों पर आधारित दो प्रश्न दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक प्रश्न का उत्तर देना होगा, इसके लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

प्रश्न 1. श्रेष्ठ कहानी की विशेषताएँ बताते हुए ध्रुवयात्रा’कहानी की समीक्षा कीजिए ।

उत्तर: जैनेन्द्र कुमार महान् कथाकार हैं ।। ये व्यक्तिवादी दृष्टि से पात्रों का मनोविश्लेषण करने में कुशल हैं ।। प्रेमचन्द की परम्परा के अग्रगामी लेखक होते हुए भी इन्होंने हिन्दी कथा-साहित्य को नवीन शिल्प प्रदान किया ।। ‘ध्रुवयात्रा’ जैनेन्द्र कुमार की सामाजिक, मनोविश्लेषणात्मक, यथार्थवादी रचना है ।। कहानी-कला के तत्त्वों के आधार पर इस कहानी की समीक्षा निम्नवत् है:-
कथानक
श्रेष्ठ कथाकार के रूप में स्थापित जैनेन्द्र कुमार जी ने अपनी कहानियों को कहानी-कला की दृष्टि से आधुनिक रूप प्रदान किया है ।। ये अपनी कहानियों में मानवीय गुणों; यथा- प्रेम, सत्य तथा करुणा को आदर्श रूप में स्थापित करते हैं ।। इस कहानी की कथावस्तु का आरम्भ राजा रिपुदमन की ध्रुवयात्रा से वापस लौटने से प्रारम्भ होता है ।। कथानक का विकास रिपुदमन और आचार्य के वार्तालाप, तत्पश्चात् रिपुदमन और उसकी अविवाहिता प्रेमिका उर्मिला के वार्तालाप और उर्मिला तथा आचार्य मारुति के मध्य हुए वार्तालाप से होता है ।। कहानी के मध्य में ही यह स्पष्ट होता है कि उर्मिला ही मारुति की पुत्री है ।। कहानी का अन्त और चरमोत्कर्ष राजा रिपुदमन द्वारा आत्मघात किये जाने से होता है ।। वस्तुत: कहानी में कहानीकार ने एक सुसंस्कारित युवती के उत्कृष्ट प्रेम की पराकाष्ठा को दर्शाया है तथा प्रेम को नारी से बिल्कुल अलग और सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित किया है ।। कहानी का प्रत्येक पात्र कर्त्तव्य के प्रति निष्ठा एवं नैतिकता के प्रति पूर्णरूपेण सतर्क दिखाई पड़ता है ।। और जिसकी पूर्ण परिणति के लिए वह अपना जीवन अर्पण करने से भी नहीं डरता ।। कहानी मनोवैज्ञानिकता के साथ-साथ दार्शनिकता से भी ओत-प्रोत है और संवेदना प्रधान होने के कारण पाठक के अन्तःस्थल पर अपनी अमिट छाप छोड़ती हैं ।। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि ध्रुवयात्रा एक अत्युत्कृष्ट कहानी है ।।
पात्र तथा चरित्र-चित्रण
जैनेन्द्र कुमार जी की प्रस्तुत कहानी में मात्र तीन पात्र हैं- राजा रिपुदमन, रिपुदमन की प्रेमिका उर्मिला और उर्मिला के पिता आचार्य मारुति ।। तीनों ही एक-दूसरे से पूर्णतया सम्बद्ध और तीनों ही मुख्य एवं समस्तरीय हैं ।। जैनेन्द्र जी की कहानियों के पात्र हाड़-मांस से निर्मित सामान्य मनुष्य होते हैं, जिनमें बुराईयों के साथ-साथ अच्छाइयाँ भी विद्यमान होती हैं ।। इनके पात्र अन्तर्मुखी होते हैं, जो सामान्य एवं विशिष्ट दोनों ही परिस्थितियों में अपना विशिष्ट परिचय प्रस्तुत करते हैं ।। प्रस्तुत कहानी के पात्र भी ऐसे ही हैं, जिनमें से एक जीवन की परिस्थितियों से असन्तुष्ट हो विद्रोही बन जाता है, दूसरा क्षणिक विद्रोही हो आत्म-त्यागी हो जाता है और तीसरा अन्ततोगत्वा समझौतावादी हो जाता है ।। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रस्तुत कहानी के पात्रों का चरित्र-चित्रण अत्यन्त स्वाभाविक, मनोवैज्ञानिक एवं दार्शनिकता से युक्त है ।।
कथोपकथन या संवाद
कहानी के संवाद छोटे, पात्रानुकूल तथा कथा के विकास में सहायक हैं ।। जैनेन्द्र जी अपने पात्रों के मनोभावों को सरलता से व्यक्त करने में सफल हुए हैं ।। लगभग पूरी कहानी ही संवादों पर आधारित है, अतः संवाद-योजना की दृष्टि से यह एक श्रेष्ठ कहानी है ।। एक उदाहरण द्रष्टव्य है दूर जमुना किनारे पहुँचकर राजा ने कहा, “अब कहो, मुझे क्या कहती हो?” “कहती हूँ कि तुम क्यों अपना काम बीच में छोड़कर आए?” “मेरा काम क्या है?” “मेरी और मेरे बच्चे की चिन्ता जरूर तुम्हारा काम नहीं है ।। मैंने कितनी बार तुमसे कहा, तुम उससे ज्यादा के लिए हो?” “उर्मिला,अब भी मुझसे नाराज हो?” “नहीं, तुम पर गर्वित हूँ ।। “ “मैंने तुम्हारा घर छुड़ाया ।। सब में रुसवा किया ।। इज्जत ली ।। तुमको अकेला छोड़ दिया ।। उर्मिला, मुझे जो कहा जाए, थोड़ा ।। पर अब बताओ, मुझे क्या करने को कहती हो? मैं तुम्हारा हूँ ।। रियासत का हूँ,न ध्रुव का हूँ ।। मैं बस,तुम्हारा हूँ ।। अब कहो ।।“
देशकाल और वातावरण
प्रस्तुत कहानी सन् 1960 के आस-पास की है ।। तत्कालीन सामाजिक वातावरण के अनुरूप ही जैनेन्द्र जी ने कहानी के पात्रों तथा उनके व्यवहार को प्रदर्शित किया है ।। कहानी का वातावरण सजीव है ।। प्रस्तुत कहानी में जीवन्त वातावरण की पृष्ठभूमि पर मानवीय प्रेम और संवेदना के मर्मस्पर्शी चित्र उकेरे गये हैं, जिसमें कहानीकार को पूर्ण सफलता मिली है ।। एक उदाहरण देखिएसमय सब पर बह जाता है और अखबार कल को पीछे छोड़ आज पर चलते हैं ।। राजा रिपु नएपन से जल्दी छूट गए ।। ऐसे समय सिनेमा के एक बॉक्स में उर्मिला से उन्होंने भेंट की ।। उर्मिला बच्चे को साथ लाई थी ।। राजा सिनेमा के द्वार पर उसे मिले और बच्चे को गोद में लेना चाहा ।। उर्मिला ने जैसे यह नहीं देखा और अपने कन्धे से उसे लगाए वह उनके साथ जीने पर चढ़ती चली गई बॉक्स में आकर सफलतापूर्वक उन्होंने बिजली का पंखा खोल दिया ।। पूछा, ‘कुछ मँगाऊँ?”नहीं!’
भाषा-शैली
अपनी कहानियों में जैनेन्द्र जी सरल, स्वाभाविक और व्यावहारिक भाषा का प्रयोग करते हैं, जिसमे संस्कृत के तत्सम, उर्दू, अंग्रेजी तथा देशज शब्दों का भी प्रचुरता से प्रयोग करते हैं ।। इसी कारण इनकी भाषा सहज, बोधगम्य एवं भावपूर्ण हो जाती है ।। इनके शब्द-चयन भावों के अनकूल होते हैं तथा शब्दों की रचना पात्रों की भूमिका को साकार कर देती है ।। प्रस्तुत कहानी की भाषा की भी ये ही विशेषताएँ हैं ।। इस कहानी में इन्होंने मुख्य रूप से कथा शैली को अपनाया है, जिसमें वार्ता शैली का प्राचुर्य तथा दुष्टान्त शैली का अल्पांश दृष्टिगोचर होता है ।। इनकी भाषा-शैली का एक उदाहरण निम्नवत् हैप्रेम से तो नाराज नहीं हो? विवाह का स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं हैं ।। प्रेम के निमित्त से उसकी सृष्टि है ।। विवाह की बात तो दुकानदारी की है ।। सच्चाई की बात प्रेम है ।। इस बारे में तुम अपने से बात करके देखो ।। वह बात डायरी में दर्ज कीजिएगा ।। अब परसों मिलेंगे ।। निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि भाषा-शैली की दृष्टि से यह एक सफल कहानी है ।।
उद्देश्य
प्रस्तुत कहानी में कहानीकार जैनेन्द्र जी ने बताया है कि प्रेम एक पवित्र बन्धन है और विवाह एक सामाजिक बन्धन ।। प्रेम में पवित्रता होती है और विवाह में स्वार्थता ।। प्रेम की भावना व्यक्ति को उसके लक्ष्य तक पहुँचने में मदद करती है ।। उर्मिला कहती है, “हाँ, स्त्री रो रही है, प्रेमिका प्रसन्न है ।। स्त्री कीमत सुनना, मैं भी पुरुष की नहीं सुनूँगी ।। दोनों जने प्रेम की सुनेंगे ।। प्रेम जो अपने सिवा किसी दया को, किसी कुछ को नहीं जानता ।। ” निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि प्रेम को ही सर्वोच्च दर्शाना इस कहानी का मुख्य उद्देश्य है, जिसमें कहानीकार को पूर्ण सफलता मिली है ।।
शीर्षक
कहानी का शीर्षक आकर्षक और जिज्ञासापूर्ण है ।। सार्थकता तथा सरलता इस शीर्षक की विशेषता है ।। कहानी का शीर्षक अपने में कहानी के सम्पूर्ण भाव को समेटे हुए है तथा प्रारम्भ से अन्त तक कहानी इसी ध्रुवयात्रा पर ही टिकी है ।। कहानी का प्रारम्भ नायक के ध्रुवयात्रा से आगमन पर होता है और कहानी का समापन भी ध्रुवयात्रा के प्रारम्भ के पूर्व ही नायक के समापन के साथ होता है ।। अत: कहानी का शीर्षक स्वयं में पूर्ण समीचीन है ।।



प्रश्न 2.‘ध्रुवयात्रा’ कहानी के आधार पर रिपुदमन का चरित्र-चित्रण कीजिए । अथवा ‘ध्रुवयात्रा’कहानी के प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।

उत्तर: ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी के आधार पर रिपुदमन के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं :-
(i)ध्रुव विजेता- राजा रिपुदमन बहादुर ने उत्तरी ध्रुव को जीता था ।। उन्होंने उत्तरी ध्रुव पर विजय प्राप्त करने जैसा मुश्किल कार्य किया था ।। यह कार्य उन्होंने उर्मिला की प्रेरणा से किया था ।। वह उर्मिला से कहता है “उर्मिला, तुमने मुझे ध्रुव भेजा कहती थी- उसके बाद मुझे दक्षिणी ध्रुव जाना होगा ।। क्या सच मुझे वहीं जाना होगा?”
(ii)उच्चवर्गीय व प्रतिष्ठित व्यक्ति- राजा रिपुदमन एक उच्चवर्गीय व्यक्ति थे ।। वह एक रियासत के राजा थे ।। ध्रुव पर विजय प्राप्त करने पर वह प्रतिष्ठित व्यक्ति बन गए थे ।। प्रत्येक स्थान पर जहाँ भी वे गये थे उनका आदर-सत्कार किया गया था ।। उनके सम्मान में समारोह तथा भोज आयोजित किए गए थे ।।
(iii)सच्चा प्रेमी- रिपुदमन उर्मिला से सच्चा प्रेम करता है ।। उर्मिला के कहने पर ही वह उत्तरी ध्रुव पर जाता है ।। रिपुदमन ध्रुव, से आने के बाद उर्मिला से विवाह करना चाहता है ।। वह उर्मिला से कहता है, “मैंने तुम्हारा घर छुड़ाया ।। सब में रुसवा किया ।। इज्जत ली ।। तुमको अकेला छोड़ दिया ।। उर्मिला मुझे जो कहो थोड़ा ।। पर अब बताओ, मुझे क्या करने को कहती हो? मैं तुम्हारा हूँ ।। रियासत का हूँ, न ध्रुव का हूँ ।। मैं बस, तुम्हारा हूँ ।। अब कहो ।। “
(iv)अप्रसन्न व्यक्तित्व- राजा रिपुदमन को स्वयं से बहुत-सी शिकायतें थी ।। वह स्वयं से अप्रसन्न था ।। उसे नींद कम आती थी ।। उसे अपने मन पर काबू नहीं था ।। इसलिए वह आचार्य मारुति के पास गया ।। जब आचार्य मारुति उसके आने का कारण पूछते है तो वह कहता है”रोगी ही आपके पास आया है ।। विजेता छल है और उस दुनिया के छल को दुनिया के लिए छोड़िए ।। पर आप तो जानते हैं ।। “ आचार्य-“हाँ चेहरे पर आपके विजय नहीं पराजय देखता हूँ ।। शिकायत क्या है?”
रिपु- “मैं खुद नहीं जानता ।। मुझे नींद नहीं आती ।। और मन पर मेरा काबू नहीं जमता ।। ”
आचार्य- “हूँ, क्या होता है?” रिपु-“जो नहीं चाहता, मन के अन्दर वह सब कुछ हुआ करता है ।। “
(v)हठधर्मी- राजा रिपुदमन हठधर्मी है ।। जब उर्मिला उसे दक्षिण ध्रुव जाने को कहती है तो वह तुरंत जाने का विचार कर लेता है और उर्मिला के इतनी जल्दी जाने से रोकने पर भी वह नहीं मानता और उससे कहता है”मैं स्त्री की बात नहीं सुनूँगा; मुझे प्रेमिका के मन्त्र का वरदान है ।। ” आँखों में आँसू लाकर उर्मिला ने रिपु के दोनों हाथ पकड़कर कहा, “परसो नहीं जाओगे तो कुछ हर्ज है? यह तो बहुत जल्दी है?” रिपु हाथ झटककर खड़ा हो गया ।। बोला, “मेरे लिए रुकना नहीं है ।। परसों तक इसी प्रायश्चित में रहना है कि तब तक क्यों रुक रहा हूँ ।। ” निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि रिपुदमन कहानी का प्रमुख पुरुष पात्र है ।। सम्पूर्ण कथानक उसी के चारों तरफ घूमती है ।। कहानीकार ने एक श्रेष्ठ प्रेमी के सभी गुण उसमें समाहित किए हैं ।। जिससे उसका चरित्र गौरवमयी हो गया है |


प्रश्न 3. ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर: ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी का उद्देश्य- उद्देश्य कहानी ‘ध्रुवयात्रा’ का मूल उद्देश्य प्रेम की पवित्रता और पराकाष्ठा की विवेचना एवं वचन-पालन के महत्त्व को प्रतिष्ठित करना है ।। कहानीकार के अनुसार वैयक्तिक सुखों की अपेक्षा सार्वभौमिक और अलौकिक उपलब्धि श्रेयस्कर है ।। निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है कि ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी तत्त्वों की दृष्टि से एक सफल मनोवैज्ञानिक कहानी है ।।


प्रश्न 4.‘ध्रुवयात्रा’ कहानी के आधार पर उर्मिला का चरित्र-चित्रण कीजिए । अथवा ‘ध्रुवयात्रा’कहानी के प्रमुख स्त्री पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।

उत्तर: ‘ध्रुवयात्रा’ कहानी के आधार पर उर्मिला के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं:-
(i)सुसंस्कारित युवती- प्रस्तुत कहानी की नायिका उर्मिला’ एक सुसंस्कारित युवती है ।। उसे बचपन में अपनी माता द्वारा अच्छे संस्कार प्राप्त हुए हैं ।। इसीलिए वह राजा रिपुदमन को अपने लक्ष्य की ओर उन्मुख होने के लिए प्रेरित करती रहती है ।।
(ii)सच्ची प्रेमिका- अपनी युवावस्था में उर्मिला रिपुदमन के प्रेमपाश में बद्ध हो जाती है ।। उस समय रिपुदमन किन्हीं सामाजिक कारणों से विवाह करने से मना कर देता है ।। बाद में जब उसे पता चलता है कि वह माँ बनने वाली है तो वह उससे विवाह के लिए कहता है, तब वह इनकार कर देती है और कहती है कि “मुझे तुमसे प्रेम है ।। प्रेम और विवाह में अन्तर होता है ।। प्रेम पवित्रतायुक्त होता है और विवाह स्वार्थयुक्त ।। ” अत: वह उसकी सच्ची प्रेमिका ही बने रहना चाहती है, स्त्री नहीं ।।
(iii)स्वतन्त्र विचारों वाली- उर्मिला स्वतन्त्र और स्पष्ट विचारों वाली युवती है ।। रिपुदमन के पूछने पर कि क्या वह विवाह करना नहीं चाहती ।। वह विवाह के लिए स्पष्ट मना कर देती है ।।वह रिपुदमन से कहती है कि “तुम्हारा शरीर स्वस्थ है और रक्त उष्ण है,तो स्त्रियों की कहीं कमी नहीं है । मैं तुम्हारे लिए स्त्री नहीं हूँ,प्रेमिका हूँ ।। इसलिए किसी स्त्री के प्रति मैं तुममें निषेध नहीं चाह सकती । ” निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि वह वर्तमान युग में प्रचलित ‘स्त्री-पुरुष के साथ-साथ रहने’ की उत्कृष्ट विचारधारा की पोषक है ।
(iv)दार्शनिक विचारों से युक्त- उर्मिला शिक्षित, स्वतन्त्र और स्पष्ट विचारों वाली युवती तो है ही, कहानी के पढ़ने से स्पष्ट प्रतीत होता है कि उसके विचारों में दार्शनिकता की विद्यमानता भी है ।। उसके विचार कभी भी पिछले स्तर पर प्रकट नहीं होते, उनमें दार्शनिकता का गम्भीर स्वर गुंजित होता है ।। एक उदाहरण द्रष्टव्य है’उर्मिला, सिद्धि मृत्यु से पहले कहाँ है?’ ‘वह मृत्यु के भी पार है, राजा! इससे मुझ तक लौटने की आशा लेकर तुम नहीं आओगे ।। सौभाग्य का क्षण मेरे लिए शाश्वत है ।। उसका पुनरार्वतन कैसा?’ ‘उर्मिला, तो मुझे जाना ही होगा? तुम्हारा प्रेम दया नहीं जानेगा?’ ‘यह क्या कहते हो, राजा! मैं तुम्हें पाने के लिए भेजती हूँ, और तुम मुझे पाने के लिए जाते हो ।। यही तो मिलने की राह है ।। तुम भूलते क्यों हो?
(v)मातृभाव से युक्त- उर्मिला ने यद्यपि बिना वैवाहिक जीवन में प्रवेश किये ही पुत्र प्राप्त किया है, तथापि उसमें मातृभाव की कमी कदापि नहीं है ।। वह रिपुदमन से कहती है, “मेरे लिए क्या यही गौरव कम है कि मैं तुम्हारे पुत्र की माँ हूँ ।। .. — दुनिया को भी जताने की जरूरत नहीं है कि मेरा बालक तुम्हारा है ।। मेरा जानना मेरे गर्व को काफी है ।। “ निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि उर्मिला ही इस कहानी के सर्व प्रमुख पात्र और नायिका के रूप में नायक है ।। कहानीकार को अपनी कल्पना में किसी स्त्री को जिन-जिन गुणों का होना अभीष्ट प्रतीत हुआ वे सभी गुण उसने प्रस्तुत कहानी की नायिका में समाविष्ट कर उसके चरित्र को अतीव गरिमा प्रदान की है ।।








धन्यवाद !


कृपया अपना स्नेह बनाये रखें ।
Youtube:- Ravikant mani tripathi

website: www.ravikantmani.in
Telegram : ravikant mani tripathi



Previous
Next

Copyright 2018. All Rights Reserved.