पात्र-परिचय
मुखिया जी -- नईडीह गाँव का मुखिया
भैरो पाण्डे -- गाँव के पण्डित
जगेसर पाण्डे, धनेसरा चाची, सोखा, ईसुर भगत -- गाँव के लोग
कुलदीप -- भैरो पाण्डे का छोटा भाई
फुलमत -- रीमल मल्लाह की विधवा लड़की
हिन्दी जगत के प्रगतिशील कहानीकार शिवप्रसाद सिंह द्वारा लिखित कहानी कर्मनाशा की हार में भारतीय समाज के गाँवों में व्याप्त अन्धविश्वास, ईष्या-द्वेष एवं ऊँच-नीच की भावना का मार्मिक व सजीव चित्रण किया गया है।
कर्मनाशा नदी का उग्र रूप
कर्मनाशा नदी के बारे में गाँव के लोगों का विश्वास था कि यदि एक बार नदी बढ़ आए तो बिना मानुस की बलि लिए नहीं लौटती। कर्मनाशा नदी के किनारे से थोड़ी ऊँचाई पर बसा एक गाँव नईडीह है, जिसके लोगों को इस नदी की भयावहता का कोई डर नहीं था। बाढ़ के अपार जल को देखकर सभी गाँव वाले खुशी में ढोलकें बजाते व गीत गाने लगते थे, क्योंकि ये बाढ़ उनके जीवन में दो-चार दिन की तब्दीली (परिवर्तन) लेकर आती थी, जिससे उनका जीवन । सुखमय हो जाता था, परन्तु पिछले साल नदी का पानी नईडीह तक आ गया था, जिसमें वह ढोलकें बह गईं। जिस नदी की बाढ़ गाँववालों की खुशियों का कारण थी वह बाढ़ उनके मातम का कारण बन जाती है। सोखा ने जान के बदले जान देकर पूजा की, पाँच बकरों की दौरी भेंट चढ़ाई तथा एक अन्धी लड़की, एक अपाहिज बुढ़िया भी भेंट चढ़ गई, परन्तु नदी में बाढ़ का पानी कम नहीं हुआ। नईडीह गाँव वाले कर्मनाशा के इस उग्र रूप से काँप उठे।
कर्मनाशा नदी में दोबारा बाढ़ आने की आशंका
कर्मनाशा नदी में बाढ़ आए एक साल भी नहीं हुआ था। गाँववालों के पुराने जख्म भरे भी नहीं थे कि भादो के दिनों में फिर नदी में पानी उफान पर चढ़ने लगता है। गाँव ऊँचाई पर बसे होने के कारण अभी तक बचा हुआ था। नदी के पानी की लहरें अनवरत टक्कर मार रही थीं, जिससे बड़े-बड़े पेड़ जड़ से उखड़ रहे थे, जो गाँव वालों को प्रलय आने का सन्देश दे रही थीं।
बाढ़ आने के पीछे गाँव वालों के अन्धविश्वास से भरे तर्क
बाढ़ आने की आशंका से भययुक्त नईडीह के लोग चूहेदानी में फंसे चूहे की तरह भय से दौड़-धूप कर रहे थे। सबके चेहरों पर भय का आतंक छाया हुआ था। ईसुर भगत, भैरो पाण्डे को बताता है कि कल दीनापुर के लोगों ने बाढ़ रोकने के लिए कड़ाह चढ़वाया था। यह सुनकर जगेसर पाण्डे भी बाल्टी लेकर कूद पड़ते हैं और सोखा भी, बात पूछने पर उन्हें पता चलता है कि इतना पानी गिरेगा कि तीन घड़े भर जाएँगे, आदमी-मवेशी की क्षय होगी और चारों ओर हाहाकार मच जाएगा, प्रलय होगी। इतने में माथे के लुग्गे को ठीक करती हुई धनेसरा चाची बोलती है “कि प्रलय न होगी, तब क्या बरकत होगी? हे भगवान! जिस गाँव में ऐसा पाप करम होगा वह बहेगा नहीं, तब क्या बचेगा?” जगेसर पाण्डे द्वारा पाप के बारे में पूछने पर वह बताती है कि विधवा फुलमत बेटा पैदाकर सुहागिन बनी है। यह सुन लोगों की भय से साँसें टंगी रह जाती हैं।
बाढ के पानी को देख भैरो पाण्डे को अतीत में आई बाढ की विभीषिका का स्मरण हो जाना
भैरो पाण्डे बैसाखी के सहारे बखरी के दरवाजे में खड़े होकर नदी की उफनता को देखते हैं। साँप, बिच्छू, कौए तथा चूहे पानी में बहते चले जा रहे थे। मिट्टी की बनी पुरानी बखरी को देख उन्हें अपने पूर्वज व उनकी शान का दबदबा याद आ जाता है। पाण्डे के दादा देस-दिहात के नामी-गिरामी पण्डित थे। उनका सम्मान इतना था कि कोई किसी को कभी सताने की हिम्मत तक नहीं करता था, जिसका प्रभाव था यह बखरी (बड़ा घर) परन्तु भाग्य का लिखा कौन मिटा सकता है, दो पुश्तों में ही सब कुछ हाथ से निकल गया था। सोलह वर्ष पहले माँ-बाप दो वर्ष के नन्हें बालक को भैरो पाण्डे के हाथ में सौंपकर चल बसे थे। धन के नाम पर बाप का कर्ज मिला, काम-धाम के लिए दूधमुंहें भाई कुलदीप की देख-रेख, रहने के लिए बखरी, जिसे पिछली बार आई बाढ़ के धक्कों ने एकदम जर्जर कर दिया है। यदि इस बार बाढ़ अपनी भयावहता लेकर आई तो यह बखरी भी नहीं बच पाएगी। यही सब सोचकर भैरो पाण्डे धम्म से चौखट पर बैठ जाते हैं।
कुलदीप का विधवा फुलमत पर मुग्ध हो जाना
कुलदीप अब 18 वर्ष का युवक हो गया है। भैरो पाण्डे का अपना पश्तैनी मकान, जिसमें रहते हुए भैरो पाण्डे सूत कातकर जनेऊ बनाते, जजमानी चलाते हैं। इसके अतिरिक्त कथा बाँचते और अपना एवं अपने भाई का भरण-पोषण करते हैं। एक दिन चाँदनी रात में मल्लाह परिवार की विधवा फुलमत, भैरो पाण्डे के यहाँ अपनी बाल्टी माँगने आती है। बाल्टी देते समय कुलदीप, फुलमत से टकरा जाता है। फुलमत मुस्कुराती है और कुलदीप उसकी ओर मुग्ध दृष्टि से देखता है। इसके बाद दोनों एक-दूसरे से प्रेम करने लगते हैं।
भैरो पाण्डे के डर से कुलदीप का घर से भाग जाना
एक दिन चाँदनी रात में कर्मनाशा के तट पर कुलदीप एवं फुलमत मिलते है। पहले से ही दोनों पर नजर रख रहे भैरो पाण्डे को कुलदीप पर इतना क्रोध आता है कि वे उसके गाल पर थप्पड़ जड़ देते हैं। इस घटना के बाद कलदीप घर से भाग जाता है और बहत ढूँढने पर भी वह भैरो पाण्डे को नहीं मिलता।
कर्मनाशा नदी में बाढ़ के पानी का बढ़ना।
कुलदीप को घर से भागे चार-पाँच महीने बीत चुके हैं। कर्मनाशा नदी में जल का प्रवाह अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका है. जिससे होने वाली तबाही की आशंका से सभी भयभीत हैं। गाँव वालों में यह अन्धविश्वास प्रचलित है कि कर्मनाशा जब उमड़ती है, तो मानव-बलि अवश्य लेती है। विधवा फुलमत द्वारा बच्चे को जन्म देने की खबर परे गाँव में फैल जाती है। और गाँव वाले कर्मनाशा की बाढ़ का कारण फलमत को ही समझने लगते हैं तथा उसके बच्चे को उसका पाप समझते हैं। उनकी धारणा है कि फुलमत की बलि पाकर कर्मनाशा शान्त हो जाएगी।
भैरो पाण्डे का अन्तर्द्वन्द्व तथा उनकी मानवीयता
जब फुलमत और उसके बच्चे को नदी में फेंकने की सूचना भैरो पाण्डे को मिलती है, तो पहले वे सोचते हैं कि चलो अच्छा ही है। परिवार के लिए कलंक बनने वाली अपने आप ही रास्ते से हट जाएगी, लेकिन फिर उन्हें यह व्यवहार क्रूर, अमानवीय लगने लगता है और उनके मन में भावनाओं का संघर्ष होने लगता है। अन्त में सत्य एवं मानवीय भावनाओं की विजय होती है और वे फुलमत एवं उसके बच्चे को बचाने चल पड़ते हैं। कर्मनाशा नदी के तट पर गाँववासियों से घिरी फुलमत के पास पहुँचकर भैरो पाण्डे निर्भीक स्वर में कहते हैं कि उसने कोई पाप नहीं किया है। वह उनके छोटे भाई की पत्नी है, उनकी बहू और उसका बच्चा उसके छोटे भाई का बच्चा है। मखिया व्यंग्यात्मक स्वर में कहता है कि “पाप का फल तो भोगना ही होगा पाण्डे जी, समाज का दण्ड तो झेलना ही होगा।” तब भैरो पाण्डे कठोर स्वर में कहते हैं कि यदि वे एक-एक के पापों को गिनाने लगें, तो यहाँ खड़े सभी लोगों को कर्मनाशा की धारा में जाना पड़ेगा। सहमे हुए स्तब्ध गाँववासी भैरो पाण्डे के चट्टान की तरह अडिग व्यक्तित्व को देखते रह । जाते हैं। कर्मनाशा की लहरें इस सूखी जड़ से टकराकर पछाड़ खा रही थीं, पराजित हो रही थीं। ‘कर्मनाशा की हार’ वस्तुतः रूढ़ियों की हार है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
निर्देश: नवीनतम पाठ्यक्रम के अनुसार, कहानी सम्बन्धी प्रश्न के अन्तर्गत पठित कहानी से चरित्र-चित्रण, कहानी के तत्त्व एवं तथ्यों पर आधारित दो प्रश्न दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक प्रश्न का उत्तर देना होगा, इसके लिए 4 अंक निर्धारित हैं।
प्रश्न 1. कहानी के तत्त्वों के आधार पर ‘कर्मनाशा की हार’ कहानी की समीक्षा कीजिए।
अथवा भाषा और शैली की दृष्टि से ‘कर्मनाशा की हार’ कहानी की समीक्षा कीजिए।
अथवा कर्मनाशा की हार’ कहानी का कथानक अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: कर्मनाशा की हार’ शिवप्रसाद सिंह द्वारा रचित एक चरित्र प्रधान सामाजिक कहानी है, इन्होंने इस कहानी के माध्यम से समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता और अन्धविश्वास का विरोध किया है। प्रस्तुत कहानी की समीक्षा इस प्रकार है:-
कथानक
कर्मनाशा की हार’ कहानी की कथावस्तु ग्रामीण अंचल की रूढ़ियों और अन्धविश्वासों पर आधारित है तथा यह एक चरित्रप्रधान कहानी है। इसमें भैरो पाण्डे के व्यक्तित्व के माध्यम से कहानीकार ने प्रगतिशील सामाजिक दृष्टिकोण का समर्थन किया है। कहानी में भैरो पाण्डे का छोटा भाई कुलदीप अपने घर के समीप रहने
वाली मल्लाह परिवार की विधवा फुलमत से प्रेम करने लगता है। अपने प्रेम सम्बन्ध की जानकारी मिलने पर कुलदीप अपने बड़े भाई भैरो पाण्डे की डाँट से घबराकर घर छोड़कर भाग जाता है। फुलमत एक बच्चे को जन्म देती है तभी कर्मनाशा नदी में बाढ़ आ जाती है, जिसे लोग फुलमत के पाप का परिणाम मानकर उसे और उसके बच्चे को नदी में फेंककर। बलि देना चाहते हैं, जिससे नदी में आई बाढ़ समाप्त हो सके। इसका विरोध करते हुए प्रगतिशील भैरो पाण्डे उसे अपनी कुलवधू के रूप में स्वीकार करके गाँव वालों का मुँह बन्द कर देते हैं। नैतिकता और वंश मर्यादा के पुरातन संस्कारों और मानवतावादी नवीन जीवन-दृष्टि के बीच गहन द्वन्द्व का चित्रण करते हुए लेखक ने निष्कर्ष रूप में नवीन दृष्टिकोण को वरीयता दी है। अतः कहानी का कथानक अत्यन्त सरल, यथार्थ तथा मनोवैज्ञानिकता, रोचकता व संवेदनशीलता की पृष्ठभूमि पर खरा उतरता है।
पात्र तथा चरित्र-चित्रण
“कर्मनाशा की हार’ कहानी पात्र और चरित्र-चित्रण की दृष्टि से विशिष्ट कहानी है। कहानी में मुख्य पात्र भैरो पाण्डे हैं तथा सोखा, ईसुर भगत, मुखिया, जगेसर पाण्डे, फुलमत, कुलदीप, धनेसरा चाची गौण पात्र हैं। मैरो पाण्डे का चरित्र-चित्रण मनोवैज्ञानिक है तथा मर्यादा और मानवता का द्वन्द्व उनके मन में निरन्तर चलता रहता है। वे कायरता छोड़कर उदारता का परिचय देते हैं और मानवता की रक्षा के लिए पूरे समाज से भिड़ जाते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य उल्लेखनीय पात्रों में कुलदीप एवं फुलमत है। कुलदीप में किसी सीमा तक मर्यादा का बोध भी है, जिसके कारण वह चुपचाप घर छोड़कर चला जाता है, जबकि फलमत अपने प्रेम की निशानी अपने बच्चे को जन्म देकर अपनी पवित्र भावना को दर्शाती है। मुखिया ग्रामीण समाज का प्रतिनिधि तथा अन्धरूढ़ियों का समर्थक चरित्र है। वह ईाल एवं क्रर है। कहानी के सभी पात्र कथावस्तु के अनुरूप क्रियाशील
हैं। इस प्रकार चरित्र-चित्रण की दृष्टि से यह सफल कहानी है।
कथोपकथन या संवाद
इस कहानी की संवाद योजना में नाटकीयता के साथ-साथ सजीवता तथा स्वाभाविकता के गुण भी मौजूद हैं। संवाद, पात्रों के चरित्र-उद्घाटन में सहायक हुए हैं, जिससे पात्रों की मनोवृत्तियों का उद्घाटन हुआ है। वे संक्षिप्त, रोचक, गतिशील, सरस और पात्रानुकूल है।
जैसे:- “परलय न होगी तब क्या बरक्कत होगी।
“मैं अपना प्राण दे सकता हूँ, किन्तु तुमको कभी नहीं।
‘इतने निर्लज्ज हो तुम दोनों।
देशकाल और वातावरण
‘कर्मनाशा की हार’ एक आँचलिक कहानी है। इस कहानी में स्वाभाविकता लाने के उद्देश्य से वातावरण की सष्टि की ओर विशेष ध्यान दिया गया है। एक कुशल शिल्पी की तरह कथाकार ने देशकाल और वातावरण का चित्रण किया है। इसके अन्तर्गत सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक परिस्थितियों का चित्रण हुआ है। लेखक ने कर्मनाशा की बाढ़ का चित्र ऐसा खींचा है, जैसे पाठक किनारे पर खड़ा होकर बाढ का भीषण दृश्य देख रहा हो।
भाषा-शैली
इस कहानी में शिल्पगत विशेषताओं व अधिक फ्लैशबैक की पद्धति का प्रयोग करके लेखक ने घटनाओं की तारतम्यता को कुशलता से जोड़ा है। कहानी की शैली की एक और विशेषता है-सजीव चित्रण और सटीक उपमाएँ। कहानीकार ने बाढ़ की विभीषिका का बड़ा ही जीवन्त तथा रोमांचक चित्रण किया है। भाषा में ग्रामीण शब्दावली मानुष, डीह, तिताई, दस, बिटवा, चौरा आदि का प्रयोग किया गया है। साथ ही महावरे तथा लोकोक्तियों का भी प्रयोग। करके कथा के वातावरण को सजीव बनाया गया है। जैसे-दाल में काला होना, पेट में दाढ़ी होना, फूटी आँख न सुहाना, खाक छानना आदि। उर्दू शब्दों; हौसला, सैलाब आदि के साथ-साथ दोहरे प्रयोग वाले शब्द: जैसे-लोग-बाग, उठल्ले-निठल्ले आदि के कारण भाषा में और अधिक सजीवता आ गई है।
उद्देश्य
उपेक्षिता के प्रति सहानुभूति एवं संवेदना व्यक्त करना तथा उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देना इस कहानी का एक मुख्य उद्देश्य है। इसमें शोषित वर्ग की आवाज को बुलन्द किया गया है। यह कहानी प्रगतिशीलता एवं मानवतावाद का समर्थन करती है। इसमें अन्धविश्वासों को खण्डित किया गया है तथा वैयक्तिक व सामाजिक सभी प्रकार के स्तरों पर होने वाले शोषण का विरोध किया गया है।
शीर्षक
प्रस्तुत कहानी का शीर्षक कथावस्तु को पूर्णतः सफल बनाने का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें प्रतीकात्मक भाव स्वतः ही देखने को मिलता है। ‘कर्मनाशा नदी’ को इस कहानी में अन्धकार निरर्थक तथा रूढ़ि के प्रतीक के रूप में चित्रित कर कहानीकार ने अपनी लेखनी का सफल सामंजस्य किया है। अन्त में कर्मनाशा नदी को नर-बलि का न मिलना उसकी हार तथा मानवता की विजय को प्रदर्शित करता है। अतः ‘कर्मनाशा की हार’ शीर्षक सरल, संक्षिप्त, नवीन व कौतूहलवर्द्धक है, जो कहानी की कथावस्तु के अनुरूप सटीक व अत्यन्त सार्थक बन पड़ा है।
प्रश्न 2.‘कर्मनाशा की हार’ कहानी के आधार पर भैरो पाण्डे की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। अथवा कर्मनाशा की हार’ कहानी के प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
शिवप्रसाद सिंह द्वारा रचित कहानी ‘कर्मनाशा की हार के मुख्य पात्र भैरो पाण्डे का प्रगतिशील एवं निर्भीक चरित्र रूढ़िवादी समाज को फटकारते हुए सत्य को स्वीकार करने की भावना को बल प्रदान करता है। भैरो पाण्डे के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं :-
(i)कर्त्तव्यनिष्ठा एवं आदर्शवादिताभैरो पाण्डे पुरानी पीढ़ी के आदर्शवादी व्यक्ति हैं, जो अपने भाई को पुत्र की भाँति पालते हैं तथा पंग होते हुए भी स्वयं परिश्रम करके अपने भाई की देखभाल में कोई कमी नहीं होने देते।
(ii)भ्रातृत्व-प्रेम भैरो पाण्डे को अपने छोटे भाई से अत्यधिक प्रेम है। उन्होंने पुत्र के समान अपने भाई का पालन-पोषण किया है। इसलिए कुलदीप के घर से भाग जाने पर पाण्डे दु:ख के सागर में डूबने लगते हैं।
(iii)मर्यादावादी और मानवतावादी प्रारम्भ में भैरो पाण्डे अपनी मर्यादावादी भावनाओं के कारण फुलमत को अपने परिवार का अंग नहीं बना पाते हैं, लेकिन मानवतावादी भावना से प्रेरित होकर वे फुलमत एवं उसके बच्चे की कर्मनाशा नदी में बलि देने का कड़ा विरोध करते हैं तथा उसे अपने परिवार का सदस्य स्वीकार करते हैं।
(iv)बौद्धिक व तार्किक व्यक्तित्व भैरो पाण्डे के विचार अत्यन्त गम्भीर व मनोवैज्ञानिक हैं। वे अन्धविश्वासों का खण्डन एवं रूढ़िवादिता का विरोध । करने को तत्पर रहते हैं। वे कर्मनाशा की बाढ़ को रोकने के लिए निदोष । प्राणियों की बलि दिए जाने सम्बन्धी अन्धविश्वास का विरोध करते है। व बौद्धिक एवं तार्किक दृष्टिकोण से बाढ़ रोकने के लिए बाँध बनाने का। उपाय सुझाते हैं।
(v)निर्भीकता एवं साहसीपन भैरो पाण्डे के व्यक्तित्व में निर्भीकता एव साहसीपन के गुण मौजूद हैं। वे मुखिया सहित गाँव के सभी लोगों के । सामने अत्यन्त ही निडरता के साथ कर्मनाशा को मानव-बलि दिए जान। का विरोध करते हैं। वे साहस से कहते हैं कि यदि लोगों के पापों को। हिसाब देने लगूं तो यहाँ मौजूद सभी लोगों को कर्मनाशा की धारा में। समाना होगा। उनकी निर्भीकता एवं साहस देखकर सभी लोग स्तब्ध रह जाते हैं। इस प्रकार, भैरो पाण्डे मानवतावादी भावना के बल पर सामाजिक
रूढियों का निडरता के साथ विरोध करते हैं तथा कर्मनाशा की लहरों को पराजित होने के लिए विवश कर देते हैं।
प्रश्न 3. ’कर्मनाशा की हार’ कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: सामाजिक समस्याओं तथा रूढ़ियों से ग्रस्त मानवता के प्रति गहन संवेदना रखने वाले प्रगतिशील कहानीकार शिवप्रसाद सिंह समस्यात्मक पष्ठभूमि पर आधारित पात्रों के मनोद्वन्द्व को उभारने में सिद्धहस्त है। लेखक शिवप्रसाद सिंह ने ‘कर्मनाशा की हार’ कहानी में भारतीय समाज के गाँवों में व्याप्त अन्धविश्वास, ई-द्वेष एवं ऊँच-नीच की भावना को व्यक्त किया है। आज भी ग्रामीण समाज में जाति-धर्म एवं अन्य आधारों पर लोगों का शोषण एवं प्रताड़न किया जाता है, जिससे मानवता भी त्राहि-त्राहि कर उठती है। प्रस्तुत कहानी में ग्रामीण अन्धविश्वासों का चित्रण करके वैचारिक प्रगतिशीलता द्वारा उसके समाधान को प्रस्तुत करने का सफल प्रयत्न किया गया है। इसके अतिरिक्त उपेक्षिता के प्रति सहानुभूति एवं संवेदना व्यक्त करना तथा उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देना रूढियों व अन्धविश्वासों की पराजय एवं मानवता की विजय सिद्ध करना ही इस कहानी का मुख्य उद्देश्य है।
प्रश्न 4.”कर्मनाशा की हार, अन्धविश्वास की पराजय एवं मानवता की विजय का उदघोष है।” इस कथन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: ‘कर्मनाशा की हार’ कहानी में कथाकार शिवप्रसाद सिंह ने प्राचीन विचारों एवं अन्धविश्वासों को पूर्णतः नष्ट कर मानवतावादी दृष्टिकोण की स्थापना पर विशेष बल दिया है। भैरो पाण्डे कहानी के सशक्त एवं प्रगतिशील पात्र हैं। कथाकार ने कर्मनाशा नदी को अन्धविश्वास के प्रतीक रूप में चित्रित किया है। कहानी में गाँव के लोगों का विश्वास है कि कर्मनाशा नदी की बाढ़ किसी मनुष्य की बलि लिए बिना नहीं घटती। गाँव के सभी पंच निर्णय करते हैं कि फुलमत एक विधवा लड़की है, उसके बावजूद उसने नवजात शिशु को जन्म दिया है, जो एक बहुत बड़ा पाप है। इसलिए इसे और इसके बच्चे को कर्मनाशा के दारुण में फेंककर बाढ़ से पूरे गाँव को बचाया जा सकता है। भैरो पाण्डे दृढ़ निश्चयी मानवीय समाज के संस्थापक हैं। वे फुलमत की गोद से बच्चे को ले लेते हैं और चिल्लाते हुए कहते हैं कि कर्मनाशा की बाढ़ दुधमुँहा बच्चे और अबला की बलि से नहीं, बल्कि बाँधों को मजबूत करने से रुकेगी। अन्ततः कहा जा सकता है कि कर्मनाशा नदी को नर-बलि का न मिलना अन्धविश्वासों की पराजय है और यही पराजय मानवता की विजय है। नैतिकता और वंश-मर्यादा के पुरातन संस्कारों और मानवतावादी नवीन जीवन-दृष्टि के बीच गहन द्वन्द्व का चित्रण करते हुए लेखक ने निष्कर्ष रूप में नवीन दृष्टिकोण को महत्त्व दिया है। समाज में व्याप्त रूढ़ियाँ. अन्धविश्वास और प्राचीनता के संस्कार अत्यन्त प्रबल होते हैं, किन्तु मनुष्य द्वारा अटल संकल्प और दृढ़ निश्चय से इन कुरीतियों को समूल नष्ट कर समाज को मजबूत व कल्याणकारी बनाया जा सकता है।
कृपया अपना स्नेह बनाये रखें ।
Youtube:- Ravikant mani tripathi
website: www.ravikantmani.in
Telegram : ravikant mani tripathi