पात्र-परिचय
जोशी -- सेना का कप्तान तथा लाटी का पति
बानो (लाटी) -- कप्तान की पहली पत्नी जो बाद में लाटी के नाम से जानी जाती है।
अधेड़ स्विस -- गोठिया सैनेटोरियम का डॉक्टर है तथा बानो (लाटी) का इलाज करता है।
पिता -- कप्तान जोशी के पिताजी
माँ -- कप्तान जोशी की मताजी
गुमान सिंह -- वैभवी व्यापारी तथा नेपाली भाभी का पति
नेपाली भाभी -- गुमानसिंह मालदार की पत्नी जो गोल-मटोल है व स्वभाव से हँसमुख रौबदार ठकुरानी।
डॉक्टर दयाल और डॉक्टर कक्कड़ -- बानो के अन्य डॉक्टर तथा विशेषज्ञ
प्रभा -- कप्तान की दूसरी पत्नी
मेजर जनरल -- प्रभा के पिताजी
बेटे -- कप्तान के दो बेटे हैं, जिन्हें कमीशन मिल गया था।
बेटी -- कप्तान की एक बेटी है, जो मिरांडा हाउस में पढ़ रही है।
हेड वैष्णवी -- वैष्णवियों की हेड है, जिसकी आवाज मर्दानी व मुखर स्वर वाली है।
गुरु महाराज -- वैष्णवी दल के गुरु, जो लाटी की बीमारी ठीक करते हैं।
सुप्रसिद्ध कथा लेखिका शिवानी द्वारा लिखित ‘लाटी घटना प्रधान कहानी है। कप्तान जोशी अपनी पत्नी बानो (लाटी) से अत्यन्त प्रेम करता है, जिसका प्रमाण उसके द्वारा की गई पत्नी की निश्छल सेवा से प्रतीत होता है। बानो टी. बी. की अतिशयता से पीड़ित होकर आत्महत्या करने का प्रयास करती हैं। कप्तान द्वारा बानो को खोजने पर उसका न मिलना तथा सोलह वर्षों बाद अचानक स्वयं मिल जाना कप्तान को कुछ ही पलों में बूढ़ा व खोखला अनुभव करा जाता है। कहानी का अन्त बानो के स्थान पर कप्तान की त्रासदी को दिखाना लेखिका को सर्वश्रेष्ठ कथाकारों में चिहित करता है।
कप्तान जोशी का अपनी पत्नी बानो के प्रति अगाध प्रेम
कप्तान जोशी तीन नम्बर के बंगले का दोगुना किराया देकर स्वयं अपनी रोगिणी पत्नी बानो के साथ रहता है। वह दिनभर बानो के पलंग के पास आराम-कुर्सी डाले बैठा रहता तथा नियमित रूप से टेम्परेचर व समयानुसार उसे दवाई देता। नित्य निकट आती मृत्यु ने बानो को चिड़चिड़ा बना दिया था, परन्तु कप्तान एक स्नेहमयी माता के समान हँसकर उसकी हर जिद पूरी करता। कहा जाता है कि टी. बी. के मरीज से थोटी टी व साथ खाने-पीने से बचना चाहिए परन्त कप्तान बानो की सेवा बिना किसी परहेज व सावधानी बरते करता रहता है। डॉक्टर व माता-पिता द्वारा बानो की मृत्यु हो जाने की सम्भावना व्यक्त करते हुए कप्तान को समझाया जाता है, परन्तु फिर भी वह यथार्थ को झुठलाकर अपनी सहज व्यावहारिक चेष्टाओं तथा बानों के प्रति अगाध व निश्छल प्रेम को ज्यों का त्यों बनाए रखता है। नेपाली भाभी की मृत्यु से कप्तान तथा बानो को सत्य का आभास होना नेपाली भाभी के पति वैभवी व्यापारी व्यक्ति थे, उनका यही व्यापार उन्हें अपनी पत्नी के प्रति उदासीन बना देता है। एक दिन नेपाली भाभी का खाँसी का दौरा इतना बढ़ जाता है कि उनकी मृत्यु हो जाती है। नेपाली भाभी की मृत्यु कप्तान को अचानक उस सत्य का आभास करवा देती है, जिसे वह जानकर भी अनजान बना रहता है। वह सोचता है कि जब ऐसी गोल-मटोल व हँसती-खेलती भाभी को मौत खींच ले गई तो हड्डियों का ढाँचा मात्र बानो तो हवा में उड़ती रुई का फाया-सा है। यह विचार कप्तान और बानो को जीवन की क्षणिकता से रू-ब-रू करा देता है।
बानो का क्षय रोग से ग्रसित होने का कारण
कप्तान जोशी को विवाह के तीसरे ही दिन बानो को छोड़कर बसरा जाना पड़ा था। तीन-दिन की सुन्दर नववधू को इस तरह अचानक छोड़कर जाना कप्तान को दुश्मन की गोलाबारी से भी भयंकर लगता है। उस समय बानो की आयु सोलह वर्ष थी। कप्तान बसरा से दो साल बाद घर लौटता है, घर की स्थिति सम्पूर्णत: बिगड़ चुकी थी। उन दो वर्षों में बानो ने सात-सात ननदों के ताने सुने, भतीजों के कपड़े धोए, ससुर के होज बिने, पहाड़ की नुकीली छतों पर पाँच-पाँच सेर उड़द पीसकर बड़ियाँ आदि तोड़ी। ससुरालवालों द्वारा उसे मानसिक प्रताडनाएँ भी दी गई कि उसका पति जापानियों द्वारा कैद कर लिया गया है, वह अब कभी नहीं लौटेगा। सास और चचिया सास व ननदों के व्यंग्य-बाण उसे अन्दर तक कचोट देते, वह घुलती गई और एक दिन क्षय का तक्षक कुण्डली मारकर उसकी छाती पर बैठ गया। क्षय रोग के चलते ससुरालवालों द्वारा बानो को सैनेटोरियम भेज दिया जाता है।
कप्तान जोशी द्वारा बानो की स्थिति देखकर भावुक होना
कप्तान जोशी बानो को देखने के लिए गोठिया जाता है, वहाँ के एक- प्राइवेट वार्ड के बरामदे में लेटी बानो को देखकर उसका कलेजा मुँह को आ जाता है। इन दो वर्षों में बानो क्षय रोग के कारण सूखकर और भी बच्ची बन गई थी। कप्तान को देखकर उसकी आँखें खुली ही रह जाती हैं और फिर उनमें से आँसू बहने लगते हैं। कहने और सुनने की। आवश्यकता ही नहीं पड़ी बानो के बहते आँसुओं ने सारे उलाहनों को कप्तान के समक्ष व्यक्त कर दिया।
बानो द्वारा मृत्यु के समीप आने का आभास कर आत्महत्या करने का प्रयास करना
सैनेटोरियम में एक अत्यन्त क्रूर नियम था। रोगियों को उनकी अन्तिम अवस्था जानकर उन्हें घर भेज दिया जाता था। बानो को दिन-भर दस्त आना, टी.बी. के मरीज के लिए खतरे से खाली नहीं होता, इसलिए डॉक्टर दयाल द्वारा कप्तान को कमरा खाली कर, घर जाने का नोटिस दे दिया जाता है। कप्तान बनावटी बात कहकर बानो से चलने के लिए कहता है। बानो समझ जाती है कि उसका भी अन्तिम समय निकट आ गया है। कप्तान देर रात तक बानो को बहलाता रहा और फिर बानो को नींद आ गई, तो कप्तान भी अपने पलंग पर जाकर सो गया। सुबह होते ही बानो के गुमशुदा होने की खबर चारों ओर फैल जाती है। दूसरे दिन बड़ी दूर रथी घाट पर बानो की साड़ी मिलती है। अभागी बानो मृत्यु से पूर्व ही मृत्यु से मिलने चली जाती है। बानो की साड़ी नदी के घाट से मिलना उसके द्वारा आत्महत्या करने का संकेत देती है।
कप्तान जोशी को ‘बानो का ‘लाटी’ के रूप में मिलना
जब कप्तान को पूरा विश्वास हो गया कि बानो अब इस दुनिया में नहीं है, तो घरवालों के जोर देने पर वह दूसरा विवाह कर लेता है। दूसरी पत्नी प्रभा से उसे दो बेटे एवं एक बेटी है और वह भी कप्तान से मेजर बन जाता है। लगभग 16 वर्ष बाद नैनीताल में वैष्णवियों के दल में उसे ‘लाटी’ मिलती है, जो यथार्थ में ‘बानो’ थी। अधेड़ वैष्णवियों के बीच बानो जब ‘लाटी’ के रूप में मिलती है, तो मेजर उसे पहचान लेता है। पता चलता है कि गुरु महाराज ने अपनी औषधियों से उसका क्षय रोग ठीक कर दिया था, लेकिन इस प्रक्रिया में उसकी स्मरण शक्ति और आवाज दोनों चली गईं। अब न तो वह बोल पाती है और न हो। उसे अपना अतीत याद है। वह वैष्णवियों के दल के साथ चली जाती है और मेजर स्वयं को पहले से अधिक बूढ़ा एवं खोखला महसूस करने लगता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
निर्देश: नवीनतम पाठ्यक्रम के अनुसार, कहानी सम्बन्धी प्रश्न के अन्तर्गत पठित कहानी से चरित्र-चित्रण, कहानी के तत्त्व एवं तथ्यों पर आधारित दो प्रश्न दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक प्रश्न का उत्तर देना होगा, इसके लिए 4 अंक निर्धारित हैं।
प्रश्न 1. कहानी के तत्त्वों के आधार पर ‘लाटी’ कहानी की समीक्षा कीजिए।
अथवा “लाटी’ कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
अथवा लाटी’ कहानी का कथानक अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर: हिन्दी साहित्य की सुप्रसिद्ध महिला कथाकार शिवानी द्वारा रचित ‘लाटी’ कहानी मौलिक व संवेदनशील पृष्ठभूमि पर लिखी गई कहानी है, जिसने आधुनिक कथा-साहित्य को नवीन दिशा देने का कार्य किया है। यह एक घटना प्रधान कहानी है, जिसकी तात्विक समीक्षा इस प्रकार है।:-
कथानक
‘लाटी’ कहानी की कथावस्तु मध्यवर्गीय पहाड़ी परिवार से सम्बन्धित है, जो विस्तृत न होकर संकुचित परिवेश में ही अपनी व्यापकता को गम्भीर बनाने में सक्षम है। कहानी बानो (लाटी) पर केन्द्रित है। बानो (लाटी) का विवाह कप्तान जोशी से होता है, परन्तु किन्हीं कारणों के चलते उसे विवाह के तीन दिन बाद ही बानो को छोड़कर युद्ध पर जाना पड़ता है। कप्तान के जाने के पश्चात् उसे ससुराल वालों की कठोर व कटु प्रताड़नाएँ झेलनी पड़ती हैं, जिसके दुःख में घुलते-घुलते उसे क्षय रोग हो जाता है। दो वर्षों बाद कप्तान घर लौटता है, तो उसे पता चलता है कि घरवालों द्वारा बानो को टी. बी.
सैनेटोरियम भेज दिया गया है। कप्तान बानो की दिन-रात सेवा करता है, परन्तु उसका रोग इतना बढ़ जाता है कि उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं रहती। बानो अपनी मृत्यु के निकट आने का आभास कर एक दिन नदी में कूद जाती है। कप्तान द्वारा ढूँढने पर उसे वह कहीं भी नहीं मिलती। घरवालों के दबाव के चलते कप्तान को प्रभा से दूसरा विवाह करना पड़ता है। कप्तान और प्रभा सोलह वर्षों बाद नैनीताल घूमने जाते हैं, तो एक चाय की दुकान पर अचानक बानो, लाटी के रूप में जीवित मिलती है, परन्तु कप्तान द्वारा उसे पुन: अपनाने की असमर्थता लाटी की त्रासदी को कप्तान की त्रासदी में परिवर्तित कर देती है। अतः कहा जा सकता है कि कहानी का घटना-क्रम व उपसंहार सुनियोजित ढंग से हुआ
है, जिससे प्रवाह और गतिशीलता अन्त तक कथावस्तु में बनी रही है। आकर्षण, रोचकता व मार्मिकता कहानी का विशेष गुण है।
पात्र तथा चरित्र-चित्रण
लाटी कहानी में पात्र व चरित्र-चित्रण कथावस्तु के विकास में सहायक हैं। कहानी के मुख्य पात्र कप्तान जोशी और बानो (लाटी) हैं तथा बानो के सास-ससुर, चचिया सास, भतीजे, डॉक्टर, नेपाली भाभी, प्रभा, हेड वैष्णवी, गुरु महाराज आदि गौण पात्र है। कप्तान जोशी व बानो का चरित्र मार्मिक सहृदय प्रेम के सक्ष्म भावों के । आधार पर गढ़े चरित्र हैं तथा अन्य सभी पात्र कहानी के विकास में वृद्धि
करते हैं। लेखिका शिवानी ने पात्रों के चरित्रांकन में अपने कशल
शाकार होने का परिचय दिया है, जिसके कारण सभी पात्र
परिस्थितिवश सजीव, स्वाभाविक तथा व्यावहारिक दिखाई पड़ते हैं।
कथोपकथन या संवाद
कथाकार शिवानी ने ‘लाटी’ कहानी में परिवेश के अनुकूल संवादों का गठन किया है। संवाद प्रत्येक पात्र की स्थिति व मनोभावों को भली-भाँति प्रकट करते हैं। संवाद संक्षिप्त व्यंग्यात्मक व रोचक हैं, जो कहानी को जीवन्त बनाने में सहायक हैं; जैसे-” है हमारे ‘बुडज्यु’ आधी कुमाऊँ के छत्रपति पर बहू तिथांण (श्मशान) को जा रही है, तो उनकी बला से।”
“यहाँ साली तबीयत बोर हो गई है।”
“ओह माई गॉड! अपने आदमी को भी भूल गई क्या?”
देशकाल और वातावरण
‘लाटी’ कहानी देशकाल और वातावरण की दृष्टि से यथार्थ व स्वाभाविक परिवेश को उजागर करती है। इस कहानी की पृष्ठभूमि का आधार पहाड़ी क्षेत्र है। सैनेटोरियम के वातावरण को कहानी के आरम्भ में ही व्यक्त पहाड़ी परिवेश का ताना-बाना बुना गया है। नैनीताल, कुमाऊँ जैसे क्षेत्रों के वर्णन ने कहानी के देशकाल और वातावरण को यथार्थपरक सजीव व जीवन्त बना दिया है।
भाषा-शैली
भाषा-शैली की दृष्टि से ‘लाटी’ कहानी विशिष्ट बन पड़ी है। लेखिका ने वर्णन प्रधान शैली वार्तालाप के माध्यम से वस्तुस्थिति को आगे बढ़ाते हुए घटना को चित्रित किया है। लेखिका ने अपनी सरल व स्वाभाविक भाषा में पहाड़ी वातावरण के अनुकूल पहाड़ी शब्दावली का प्रयोग यथास्थान किया है। अंग्रेजी-फारसी, तत्सम, तद्भव, देशज व आँचलिक शब्दों का सटीक रूप में प्रयोग किया गया है। वर्णनात्मक हास्य-व्यंग्यात्मक शैलियों का प्रयोग कहानी की भाषा-शैली को प्रभावपूर्ण बनाता है।
उद्देश्य
कहानी का उद्देश्य मध्यम वर्गीय समाज में पति के बिना अकेली रहने वाली पत्नी के जीवन की त्रासदी को दिखाना है। लेखिका ने यह भी सन्देश दिया है कि महिला ही महिला का शोषण करती है। उन्हें अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना चाहिए तथा इसमें यह भी बताया गया है कि क्षय रोग असाध्य नहीं है। परिजनों के सहयोग और प्रेम से रोगी को बचाया जा सकता है।
शीर्षक
प्रस्तुत कहानी का शीर्षक ‘लाटी’ बानो (लाटी) के जीवन की व्यथा को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः सफल है, क्योंकि सम्पूर्ण कहानी बानो (लाटी) के इर्द-गिर्द घूमती है। अत: कहानी का शीर्षक चरित्र प्रधान है। अपनी संक्षिप्तता, मौलिकता व कौतूहलता के चलते ‘लाटी’ शीर्षक पाठक के मन में आरम्भ से अन्त तक जिज्ञासा का प्रतिपादन करता है।
प्रश्न 2. लाटी’ कहानी के आधार पर बानो (लाटी) का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
सुप्रसिद्ध कथाकार शिवानी द्वारा रचित कहानी ‘लाटी’ में बानो मुख्य स्त्री पात्र है, जो बाद में ‘लाटी’ के नाम से जानी जाती है। बानो कप्तान जोशी की पहली पत्नी है, जिससे कप्तान अगाध प्रेम करता है। बानो के चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:-
(i) मोहक एवं भोला व्यक्तित्व सोलह वर्षीय बानो का व्यक्तित्व अत्यन्त मोहक एवं भोला है। ताऊ तथा पिता द्वारा दसवीं पास बानो के साथ कप्तान जोशी का विवाह करवा देने पर वह उनसे सख्त नाराज रहता है, परन्तु विवाहोपरान्त वही कप्तान जोशी बानो के भोलेपन व मोहकता की ओर आकर्षित हो जाता है और उससे अगाध प्रेम करने लगता है।
(ii) भावुक व्यक्तित्व बानो (लाटी) का व्यक्तित्व भावुक व सरल है। अपने नाम को कप्तान द्वारा मुसलमानी बताने पर उसकी आँखें छलक जाती हैं। जब कप्तान युद्ध पर जाने के लिए बानो से विदा लेने जाता है, तो वह अत्यन्त भावुक हो उठती है। कप्तान को सैनेटोरियम में देख उसकी आँखें खुली ही
रह जाती हैं और उनमें से निरन्तर आँसू बहते रहते हैं।
(iii) त्यागमयी पतिव्रता स्त्री बानो (लाटी) त्यागमयी पतिव्रता स्त्री है। वह क्षय रोग से पीड़ित है, कप्तान द्वारा निष्ठापूर्वक उसकी सेवा करने के बाद भी उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं होती। इसी कारण क्षय रोग से तंग आकर तथा इसके कारण होने वाली परेशानियों से पति को मुक्त करने के लिए वह आत्महत्या करने का निर्णय लेती है और नदी में कूद जाती है। इस प्रकार बानो (लाटी) का चरित्र अत्यन्त भावपूर्ण एवं संवेदनशील है, जो पाठकों के हृदय को भीतर तक झकझोर देता है।
प्रश्न 3. कप्तान जोशी की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: कप्तान जोशी सेना का कप्तान है। शारीरिक स्थिति छ: फुट व भूरी-भूरी आँखों वाले कप्तान की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:-
(i) बानो के प्रति पूर्णतः समर्पित कप्तान जोशी अपनी पत्नी बानो (लाटी) से अगाध प्रेम करता है। उसके क्षय रोग से ग्रसित होने पर भी वह उससे अत्यधिक प्रेम करता है तथा वह दिन-रात बिना परहेज व सावधानी बरते बानो की सेवा में तल्लीन रहता है।
(ii) हँसमुख व मजाकी स्वभाव कप्तान जोशी का स्वभाव हँसमुख व मजाकी है। जीवन के इतने कठिन समय में भी वह अलमस्त डोलता तथा गमानसिंह मालदार की गोल-मटोल पत्नी से मजाक करता रहता है।।
(iii) स्नेहमयी सेवा का भाव कप्तान जोशी स्नेहमयी सेवा के भाव से ओत-प्रोत । है। वह पास के दूसरे मरीजों की बड़ी तृष्णा व चाव से सेवा करता है।। उसके चेहरे पर कभी झुंझलाहट या खीझ की रेखा नहीं उभरती। वह बानो की हर जिद स्नेहमयी माता की भाँति हँस खेलकर झेल लेता है तथा उसे अपने ओवरकोट में लपेटकर अपनी देह से लगाकर लम्बे चीड़ की छाया में बैठा रहता है।
(iv) सच्चा प्रेमी व आदर्श पति कप्तान जोशी सच्चा प्रेमी व आदर्श पति है। वह डॉक्टर द्वारा नोटिस देने की बात बानो से छिपाता है और सैनेटोरियम से जाने का कारण अपनी तबीयत का बोर होना बताता है। वह बानो को रातभर बहलाता और गुनगुनाता है-“बानो मेरी बन्नी, बन्नू। बानो की साड़ी रथी घाट पर मिलने पर वह उसे अपनी छाती से चिपकाए फिरता रहता है।” इस प्रकार कहा जा सकता है कि कप्तान का चरित्र सेवा, प्रेम, व मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण है।
प्रश्न 4. 'लाटी’ कहानी के उददेश्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:सुप्रसिद्ध लेखिका शिवानी द्वारा रचित ‘लाटी’ कहानी घटना प्रधान व आदर्श प्रेम पर आधारित कहानी है। यह कहानी महिला त्रासदी पर आधारित है। इस कहानी में लेखिका ने समाज की असंवेदनशीलला को अत्यन्त सहज रूप में चित्रित किया है तथा साथ ही कहानी में मध्यम वर्गीय समाज में पति की अनुपस्थिति में रहने वाली स्त्री के जीवन की मार्मिकता को भी उजागर किया है। लेखिका ने इस यथार्थ का भी उदघाटन किया है कि वर्तमान समय में महिला ही महिला का शोषण करती है। लेखिका समाज की रूढ़िगत मानसिकता को बदलना चाहती है। कि जिस बहू को लोग अपने घर की लक्ष्मी बनाकर लाते हैं, उसके साथ जानवरों जैसा क्रूर व्यवहार करने लगते हैं, जोकि मानवीय दृष्टिकोण से अनुचित कार्य है। घर आई बहू को वही प्रेम व स्नेह देना चाहिए, जो अपनी स्वयं की बटी को दिया जाता है। लेखिका ने यह भी स्पष्ट किया है नियरो (टी. बी.) असाध्य रोग नहीं है। रोगी को किसी सैनेटोरियम भेजने के बजाय विशेष देखभाल कर, सहयोग व प्रेम से बचाया जा सकता है। पति के बिना स्त्री का ससुराल में कोई मान-सम्मान नहीं होता तथा। उसे शारीरिक व मानसिक यातनाओं का शिकार होना पड़ता है। इसी समस्या से पाठकों को अवगत कराना लेखिका का मुख्य उद्देश्य है।
कृपया अपना स्नेह बनाये रखें ।
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